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अंतरिक्ष में इतिहास रचने के बाद भारत ने अब की चंद्रमा पर सैर

अंतरिक्ष की दुनिया में नया इतिहास रचने के एक दिन बाद भारत ने आज एक और कीर्तिमान रचा। सुबह सुबह जब इसरो ने खबर दी कि भारत ने चंद्रमा पर सैर की है तो हर भारतीय का मन प्रफुल्लित हो गया। हम आपको बता दें कि चंद्रमा की सतह पर पहुंचे चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर मॉड्यूल (एलएम) से रोवर ‘प्रज्ञान’ बाहर निकल आया है। इस प्रकिया पर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने कहा, ‘‘भारत ने चांद पर सैर की।’’ अपने आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर इसरो ने कहा कि ‘‘रोवर बाहर निकल आया है’’। इसरो ने कहा, ‘‘चंद्रयान-3 रोवर : ‘मेड इन इंडिया- मेड फॉर मून’। चंद्रयान-3 का रोवर लैंडर से बाहर निकल आया है और भारत ने चांद की सैर की।’’ दूसरी ओर, भारत ने जो इतिहास रचा है उसको लेकर दुनिया भर में खुशी की लहर है। दुनिया भर के देशों के राष्ट्राध्यक्ष और उन देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों की ओर से भारत को लगातार बधाइयां मिल रही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राष्ट्राध्यक्षों के बधाई संदेश के लिए उनका आभार एक्स पर प्रकट भी किया है। हम आपको यह भी बता दें कि आधिकारिक सूत्रों ने पहले ही लैंडर ‘विक्रम’ से रोवर ‘प्रज्ञान’ के सफलतापूर्वक बाहर निकलने की पुष्टि कर दी थी। इसरो ने इससे पहले कहा था कि 26 किलोग्राम वजनी छह पहियों वाले रोवर को लैंडर के अंदर से चांद की सतह पर उसके एक ओर के पैनल को रैंप की तरह इस्तेमाल करते हुए बाहर निकाला जाएगा। हम आपको यह भी बता दें कि लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) का कुल वजन 1,752 किलोग्राम है और जिन्हें चंद्रमा के वातावरण के अध्ययन के उद्देश्य से एक चंद्र दिवस अवधि (करीब 14 पृथ्वी दिवस) तक संचालन के लिए डिजाइन किया गया है। इसरो के अधिकारियों ने हालांकि इसके अगले चंद्र दिवस तक काम करते रहने की संभावना से इंकार नहीं किया है। रोवर इस दौरान चांद की सतह पर घूमकर वहां मौजूद रसायन का विश्लेषण करेगा। लैंडर और रोवर के पास वैज्ञानिक पेलोड हैं जो चांद की सतह पर प्रयोग करेंगे। रोवर अपने पेलोड ‘एपीएक्सएस’ (अल्फा पार्टिकल एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर) के जरिए चंद्रमा की सतर का अध्ययन करेगा ताकि रासायनिक संरचना की जानकारी प्राप्त की जा सके और चंद्रमा की सतह के बारे में ज्ञान को और बढ़ाने के लिए खनिज संरचना का अनुमान लगाया जा सके। ‘प्रज्ञान’ में भी एक पेलोड- ‘लेजर इंड्यूस्ड ब्रेकडाउन स्पेक्ट्रोस्कोप’ (एलआईबीएस) है जो चंद्रमा की मिट्टी और चट्टानों की मौलिक संरचना का पता लगाएगा। उल्लेखनीय है कि इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने इससे पहले कहा था, ‘‘लैंडर के चांद की सतह पर उतरने के बाद रैंप और लैंडर के अंदर से रोवर को निकालने की प्रक्रिया की जाएगी। इसके बाद एक के बाद एक सभी प्रयोग होंगे- इन सभी को चंद्रमा पर सिर्फ एक चंद्र दिवस यानी पृथ्वी के 14 दिन में पूरा करना होगा।’’हम आपको यह भी बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन के लैंडर ‘विक्रम’ ने चंद्रमा की सतह पर उतरने के लिए अपेक्षाकृत एक समतल क्षेत्र को चुना। उसके कैमरे से ली गयी तस्वीरों से यह पता चला है। इसरो ने कहा कि विक्रम के सफलतापूर्वक चंद्रमा पर पहुंचने के तुरंत बाद ‘लैंडिंग इमेजर कैमरा’ ने ये तस्वीरें कैद कीं। तस्वीरें चंद्रयान-3 के लैंडिंग स्थल का एक हिस्सा दिखाती हैं। इसरो ने कहा, ‘‘लैंडर का एक पैर और उसके साथ की परछाई भी दिखायी दी।’’ इसरो ने यह भी बताया कि लैंडर और इसरो के मिशन ऑपरेशंस कॉम्प्लेक्स (एमओएक्स) के बीच संचार भी स्थापित हुआ है। इसरो ने चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर उतरते वक्त ली गयी तस्वीरें भी जारी की हैं।