रक्षा मंत्रालय की अर्जी पर SC ने किया साफ, सशस्त्र बलों में व्यभिचार के लिए आर्मी एक्ट के तहत कार्रवाई जारी रहेगी
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को रद्द करने के उसके 2018 के फैसले का सशस्त्र बलों में व्यभिचारी आचरण के लिए सेवा करने वाले कर्मियों के खिलाफ शुरू की गई कोर्ट मार्शल की कार्यवाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि 2018 का फैसला सशस्त्र बल अधिनियम के प्रावधानों से बिल्कुल भी संबंधित नहीं था। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने व्यभिचार के अपराध से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया। मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट केंद्र द्वारा दायर एक आवेदन पर सुनवाई कर रहा था जिसमें स्पष्टीकरण मांगा गया था कि यूसुफ शाइन मामले के फैसले के बावजूद सेना के जवानों पर व्यभिचार के लिए सेना अधिनियम के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है। दरअसल रक्षा मंत्रालय ने व्याभिचार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने वाले सुप्रीम कोर्ट के 2018 के फैसले से छूट मांगी थी। रक्षा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों के संविधान पीठ से कहा कि धारा 497 को रद्द करने के बाद रक्षा कर्मियों के बीच व्याभिचार के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। रक्षा मंत्रालय सेना अधिनियम के प्रावधानों के तहत सशस्त्र कर्मियों पर मुकदमा चलाना जारी रखना चाहता है. नैतिक अधमता के कृत्यों का वर्दीधारी पेशे में कोई स्थान नहीं है।